GEOGRAPHY PART -2
In This Part-
1.पृथ्वी की गतियां
2.घूर्णन गति
3.पृथ्वी की परिक्रमण गति
4.सागर समीर
5.स्थल समीर
6.घाटी समीर
7.पर्वत समीर
पृथ्वी की गतियां
पृथ्वी दो प्रकार की गतियां करती है पृथ्वी की
गतियों के लिए सूर्य का आकर्षण
अर्थात गुरुत्वाकर्षण उत्तरदाई है। मैं आपको यहां पर एक बात बता दूं सौरमंडल में
या ब्रह्मांड में जो भी आकाशीय पिंड हैं वह गति करते हैं कोई भी ऐसा आकाशीय पिंड
नहीं है जो एक स्थान पर स्थिर हो। सौरमंडल
में सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम या
पश्चिम से पूर्व घूर्णन करते हैं।
इन सभी का घूर्णन करने का एवं परिक्रमण करने का समय अलग अलग है। हम यहां पर अध्ययन करेंगे कि पृथ्वी कितने प्रकार की गतियां करती है। पृथ्वी दो प्रकार गतियां करती है 1. घूर्णन 2 . परिक्रमण
घूर्णन गति
पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है और अपनी कक्षा में रहते हुए
सूर्य के चारों तरफ घूमते हुए अपने अक्ष पर
पश्चिम से पूर्व घूर्णन करती है
इसके खून करने का समय लगभग 24 घंटे होता है
अर्थात पृथ्वी की जीवन की दिशा है वह पश्चिम पश्चिम से पूर्व की ओर है
पृथ्वी के घूर्णन के परिणाम जानेंगे पृथ्वी के
घूर्णन से क्या-क्या पृथ्वी पर प्रभाव या परिणाम होते हैं
1.दिन और रात का
होना
2.ज्वार ज्वार
भाटा
3.मौसम परिवर्तन
4.सागर समीर
5.घाटी समीर
6.पर्वत समीर इत्यादि
1.दिन और रात का होना
जब पृथ्वी घूर्णन करती है तब उस दिन और रात होते हैं जैसे हम समझ सकते हैं कि किस तरफ सूर्य होता है पृथ्वी का उस तरफ भाग दिन होता है और सूर्य के विपरीत दिशा में पृथ्वी पर रात होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं दिन रात होने की घटना पृथ्वी के घूर्णन पर निर्भर करते हैं।
2.ज्वार ज्वार भाटा
ज्वार- भाटा भी पृथ्वी की घूर्णन गति का परिणाम है। ज्वार भाटा का मतलब है पृथ्वी का समुद्र सेस्थल की ओर जल का आना और स्थल से समुद्र की ओर जल का जाना।यह दोनों क्रियाएं पृथ्वी की घूर्णन गति का परिणाम है। सूर्य और चंद्रमा की आकर्षण के कारण समंदर का जल 6 घंटे स्थल की ओर और 6 घंटे समुद्री ओर जाता है। इसी प्रक्रिया को हम ज्वार भाटा कहते हैं।
3.मौसम परिवर्तन
मौसम परिवर्तन भी पृथ्वी की घूर्णन गति का परिणाम है जैसे मान लीजिए सुबह 5:00 बजे का तापमान कुछ और होता है। जबकि 11 बजे का तापमान कुछ और होता है दिन के 2:00 बजे के तापमान कुछ और होता है। मौसम परिवर्तन भी पृथ्वी के घूर्णन का परिणाम है।
2.सागर समीर
हम सभी जानते हैं कि यदि कोई वस्तु जो जल्दी गर्म होती है तो इतनी जल्दी ठंडी भी होती है अर्थात यदि हम बात करें स्थल और सागर की तो स्थल जल्दी गर्म हो जाता है और जल्दी ठंडा भी हो जाता है। यदि हम देखेंगे भारतीय तट को तो दिन का तापमान भारतीय तट के अंदर यानी आंतरिक भाग में 26 डिग्री मान लेते हैं और समंदर के किनारे का 22 डिग्री तापमान होता है। समंदर का वायुदाव अधिक होगा और महाराष्ट्र की तरफ तापमान अधिक होने के कारण वायुदाव कम होगा। इस प्रकार महासागर से यानी समंदर से यानी अरब सागर से वायु स्थल की ओर चलने लगती है यानी वायु समंदर से महाराष्ट्र की ओर या केरला तमिलनाडु की ओर चलने लगती है ऐसी पवन को हम सागर समीर कहते हैं। यह स्थिति दिन के समय होती है अर्थात हम कह सकते हैं कि सागर समीर दिन में चलती है।
3.स्थल समीर
यदि हम बात करें रात्रि की तुलना में स्थलमंडल यानी महाराष्ट्र का भाग बहुत तेजी से ठंडा होगा। दिन में 26 डिग्री था वो रात में 17 डिग्री हो सकता है वही समुद्र के तट का किनारा जो 22 डिग्री था वह 18 डिग्री हो सकता है इस स्थिति में देखेंगे कि स्थल कार्य तापमान है वह महासागर के तापमान से कम है यानी अरब सागर के तापमान से कम है ऐसी स्थिति में क्या होगा स्थलमंडल पर वायुदाब अधिक होगा और जलमंडल पर वायुदाब कम होगा ऐसी स्थिति में जो पावन है स्थल से महासागर की ओर यानी अरब सागर की ओर चलने लगती है ऐसी पवन को हम स्थल समीर कहते हैं। यानी हमेशा रात में चलती है।
6.घाटी समीर
घाटी समीर जब पवन घाटी से पहाड़ों की ओर जाती है तो उसे घाटी समीर कहते हैं। दिन के समय पहाड़ों का तापमान अधिक होता है एवं घाटी का तापमान कम होता है। पहाड़ों का तापमान अधिक होने से वायुदाब पहाड़ों का निम्न हो जाता है और घाटी का तापमान कम होने से घाटी में वायुदाब अधिक हो जाता है इस तरह से वायु उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलने लगती। वायु घाटी से पहाड़ों की ओर चलने लगती है इसे ही घाटी समीर कहते हैं। यह प्रक्रिया हमेशा दिन में होती है। हम कह सकते हैं कि घाटी समीर हमेशा दिन में चलती है।
पर्वत समीर
रात्रि के समय तापमान में अधिक तेजी से गिरावट आती है इस स्थिति में ताप तापमान पहाड़ों का अधिक तेजी से कम होता है लेकिन घाटियों का तापमान तेजी से कम नहीं होता अर्थात पहाड़ों पर तापमान जीरो डिग्री या माइनस में चला जाता है लेकिन घाटी का तापमान 3 या 4 या 5 डिग्री तक रहता है इस स्थिति में घाटी का तापमान अधिक होने के कारण निम्न वायुदाब हो जाता है जबकि पहाड पर कम तापमान होने कारण वायुदाब अधिक रहता है। जिससे वायु पहाड़ो से घाटी की ओर चलने लगती इसे पर्वत समीर कहते हैं।
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