अध्याय 1प्राचीन इतिहास हरियाणा
* भारतीय गणतन्त्र में, एक अलग राज्य के रूप में, हरियाणा की स्थापना यद्यपि 1 नवम्बर, 1966 को हुई किन्तु एक विशिष्ट एवं सांस्कृतिक इकाई के रूप में हरियाणा का अस्तित्व प्राचीन काल से रहा है।
* वैदिक ग्रंथो में जिस प्रदेश को ब्रह्मावर्त कहा गया है, वह पंजाब और हरियाणा का क्षेत्र है। मनु के अनुसार, इस प्रदेश का अस्तित्व देवताओं से हुआ था, इसलिए इस प्रदेश को ब्रह्मावर्त नाम दिया गया था।
*हरियाणा राज्य में लगभग 1.5 करोड़ वर्ष पूर्व के मानव जीवन के साक्ष्य मिले हैं।
*'हरियाणा' शब्द की व्युत्पत्ति 'हरि' तथा 'आयण' से हुई है। ऋग्वेद में सर्वप्रथम 'रजे हरियाणे' शब्द का उल्लेख हुआ है।
ऐतिहासिक स्त्रोत
* प्राचीन इतिहास के स्रोत को मुख्यतः तीन भागो में बांटा जाता है-साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक स्रोत तथा आधुनिक स्रोत।
साहित्यिक स्रोत
*साहित्यिक स्रोतों के अनुसार, वैदिक आर्यों का मुख्य म्थल हरियाणा था।
*ब्राह्मण ग्रन्यो ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, छान्दोग्य उपनिषद् में इस राज्य के सामाजिक व आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती है।
* तीन वेदों ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद की रचना इस क्षेत्र में हुई है। अधिकांश उपनिषदों एवं ब्राह्मण ग्रथों की रचना भी हरियाणा के आस-पास हुई है।
बौद्ध साहित्य
* बौद्ध ग्रंथो दिव्यावदान, मज्झिमनिकाय आदि ग्रन्थों से हरियाणा के जन-जीवन का उल्लेख मिलता है। दिव्यावदान में उल्लिखित अग्रोहा व रोहतक बौद्ध धर्म के प्रचार केन्द्र थे।
* वौद्धकाल के आरम्भ में सोलह महाजनपदों की चर्चा बौद्ध साहित्य में विस्तारपूर्वक हुई है।
* इनमें कुरू, पाचाल, सुरसेन, अवंती, वज्जी, कौशल, अंग, मल्ल, चेदि, वत्स, मगध, मत्स्य, अस्मक, गाधार, कम्बोज और काशी का उल्लेख हुआ है।
* आधुनिक हरियाणा के भाग उस समय कुरू और पांचाल महाजनपदों के भाग थे।
जैन साहित्य
* कथाकोश तथा भद्रबाहुचरित में प्रथम शताब्दी तक के सांस्कृतिक जीवन के विषय में जानकारी मिलती है।
अग्रोहा उस समय सांस्कृतिक केन्द्र था। प्रथम सदी में लोहाचार्य नामक जैन विद्वान् अग्रोहा में रहते थे।
* जैन कवि पुष्पदन्त ने 'महापुराण' तथा श्रीधर ने 'पासणाहचरिउ' में हरियाणा प्रदेश का उल्लेख किया है।
जैन ग्रन्थों में कई जगहों पर रोहतक का उल्लेख किया गया है। महाराजा अग्रसेन का सम्बन्ध अग्रोहा नगर से था।
महाभारत
*महाभारत की रचना कुरुक्षेत्र 'हरियाणा' में महर्षि वेद व्यास द्वारा किया गया।
*महाभारत महाकाव्य में नकुल दिग्विजयम शीर्षक के अन्तर्गत नकुल द्वारा रोहतक व सिरसा पर विजय प्राप्त करने का वर्णन है।
अनेक संस्कृत ग्रन्थों अष्टाध्यायी, महाभाष्य, हर्षचरित इत्यादि में हरियाणा के विषय में संकेत प्राप्त होते हैं।
पौराणिक साहित्य
* पुराणों के माध्यम से ही हरियाणा के प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है, जिसमें वामन पुराण प्रमुख है।
* वामन पुराण में सात वनों (1 काम्यक वन 2 अदिति वन 3.व्यास वन 4.फलको वन 5.सूर्य वन 6. मधु वन शीत वन) का उल्लेख है।
* वामन पुराण में नौ नदियों (1. सरस्वती 2 वैतरणी 3. आपगा 4.मन्दाकिनी 5 मधुश्रवा 6 अंशुमती 7 कौशिकी 8. दृष्द्धती 9. हिरण्यवती) का उल्लेख है।
विदेशी वृतान्त
* विदेशी यात्रियों-फाह्यान, ह्वेनसांग, एरियन आदि ने अपने यात्रा विवरणों में हरियाणा के विषय में जानकारी दी है।
* ह्वेनसांग द्वारा थानेसर (थानेश्वर) नगर के वैभव व समृद्धि का वर्णन किया गया है।
पुरातात्विक स्रोत
* सर एलेक्जेण्डर कनिंघम, जिन्हें भारतीय पुरातत्त्व का जनक कहा जाता है, ने 1862 ई में हरियाणा क्षेत्र का भ्रमण किया था।
* हरियाणा में प्रथम पुरातात्विक खुदाई डी. बी. स्नूपर ने वर्ष 1921-22 में धानेसर के निकट राजा कर्ण के किले नामक टीले पर कराई थी।
* प्रो. बी. बी. लाल के नेतृत्व में कुरुक्षेत्र के अमीन, पेहोवा, थानेसर आदि स्थलों से कई महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक सामग्री एकत्र की गई।
* वर्ष 1974-75 में हरियाणा पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने बनावली, अग्रोहा तथा कुणाल स्थल की खुदाई की। यह हड़प्पा सभ्यता से जुड़े स्थल हैं।
* इसी प्रकार वर्ष 1975-76 में भगवानपुर तथा काशीतल की पुरातात्विक खुदाई हुई, जहाँ से पुरातात्विक साक्ष्य (सिक्के, आभूषण, मृद्भाण्ड) आदि मिले हैं।
अभिलेख
* हरियाणा से आज्ञापत्र, दानपत्र आदि के रूप में 37 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। अभिलेख धार्मिक, प्रशस्ति, स्मारक, दान-पत्र तथा आज्ञा-पत्र के रूप में उत्तीर्ण किए गए थे।
*हरियाणा से अभिलेखों में सबसे महत्त्वपूर्ण अम्बाला के निकट टोपरा से प्राप्त अशोककालीन स्तम्भ है।
*अम्बाला के पास टोपरा से अशोक का स्तम्भ प्राप्त हुआ है। ये लेख ब्राह्मी लिपि एवं प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण हैं। ग्यारहवीं शताब्दी के राजा विग्रहराज चतुर्थ के तीन अभिलेख भी टोपरा के स्तम्भ पर अंकित है।
*करनाल से प्राप्त खरोष्ठी लिपि में अंकित अभिलेख किसी तालाब के निर्माण से सम्बद्ध है।
* हिसार के गूजरी महल के एक स्तम्भ पर आठ अभिलेख है, जो आठ स्थानों से आने वाले भगवतों की सूचना देते हैं।
* धुन से प्राप्त अभिलेख राज्य से प्राप्त बारहखड़ी लिखाई का सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख है।
*अग्ग्रोहा से प्राप्त हुए एक अभिलेख पर संगीत के सात स्वरों का
*अंकन है। हाँसी से प्राप्त अभिलेख को पृथ्वीराज द्वितीय से सम्बन्धित पाया गया।
*पेहोवा से भोजदेव का अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख 9वीं शताब्दी का है। पेहोवा घोड़ों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।
*10वीं शताब्दी के कुछ अभिलेख मोहनबाड़ी (रोहतक) और गुरावड़ा (रेवाड़ी) से मिले है, जो वैष्णव मन्दिरों के निर्माण से सम्बन्धित है
मुद्राएँ
* हरियाणा का 200 ई. पू. से 300 ई. पू. तक का इतिहास लगभग सिक्कों निर्भर है। सिक्कों के अध्ययन को मुद्रा विज्ञान (Numismatics) कहा जाता है।
*खोखराकोट (रोहतक) से इण्डो-ग्रीक शासकों (प्रथम शताब्दी ई.पू.) के सिक्के प्राप्त हुए हैं।
* सुघ, अग्रोहा, नौरंगाबाद आदि स्थानों से आहत सिक्के मिले हैं। आहत सिक्कों पर पशुओं तथा पक्षियों के चित्र उत्कीर्ण होते थे। इन्हें 'पंचमार्ड' सिक्के भी कहा जाता है।
*कुषाण शासकों के सोने एवं ताँबे के सिक्के मीताथल से प्राप्त हुए हैं।
खोखराकोट, अछेद, पहाड़ीपुर, मोहनबाड़ी, औरंगाबाद, अग्रोहा, राखीगढ़, सुध, करनाल आदि स्थानों से अनेक मुद्रांक प्राप्त हुए हैं। ये मुद्रांक सिक्के ढालने के काम आते थे।
* हिसार व अग्रोहा के टीले से उत्खनन में इण्डो-ग्रीक सिक्के तथा पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुए हैं।
* सुनेत (लुधियाना) से प्राप्त एक सिक्के पर 'जयमन्धार' अंकित है जो यौधेय शासक कार्तिकेय की सफलता की पुष्टि करता है।
अन्य स्रोत
कुरुक्षेत्र के थानेसर में राजा कर्ण का किला एवं सम्राट हर्षवर्द्धन का महल व किले के अवशेष अवस्थित हैं।
8वीं तथा 12वीं शताब्दी के कुछ खण्डहर प्राचीन मन्दिर रोहतक, पिंजौर, कलायत आदि जगहों पर हैं।
*हरियाणा की प्राचीन नदियों सरस्वती तथा दृषद्वती के किनारे सैन्धव लोगो की बस्तियाँ थी।
*हरियाणा के कलायत नामक स्थान पर उत्तर-गुप्त कालीन ईंटों से निर्मित दो शिखर युक्त मन्दिर हैं।
*पेहोवा में प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल का अभिलेख प्राप्त हुआ है। 905 ई. के इस अभिलेख में मंदिरों के निर्माण की चर्चा है।
*अधिकांश मूर्तियाँ मिली हैं, वह वैष्णव, बौद्ध तथा जैन धर्म से सम्बन्धित हैं। पूर्व मध्यकाल की जो मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, वह अधिकांशतः प्रतिहार तथा तोमर काल की हैं।
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