कावेरी नदी जल विवाद
कावेरी नदी जल विवाद भारत के कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों के बीच कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर एक लंबे समय से चल रहा विवाद है। यह विवाद 19वीं शताब्दी से चला आ रहा है, जब ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने कावेरी बेसिन को इन दोनों राज्यों के बीच बांटा था।
कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों के लिए एक प्रमुख जल स्रोत है। इसका उपयोग सिंचाई, पेयजल और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों के बीच तनाव बढ़ गया है, और कुछ मौकों पर हिंसा भी हुई है।
1990 में, भारत सरकार ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) का गठन विवाद को हल करने के लिए किया था। CWDT ने 2007 में एक अंतिम फैसला सुनाया, जिसमें तमिलनाडु को 419 TMCft पानी, कर्नाटक को 270 TMCft पानी, केरल को 30 TMCft पानी और पुडुचेरी को 7 TMCft पानी आवंटित किया गया था।
हालांकि, कर्नाटक ने CWDT के फैसले को पूरी तरह से लागू करने से इनकार कर दिया है, यह तर्क देते हुए कि यह राज्य के लिए अनुचित है। इससे कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच और तनाव बढ़ गया है, और विवाद अभी भी अनसुलझा है।
कावेरी नदी जल विवाद एक जटिल मुद्दा है जिसमें आसान समाधान नहीं है। दोनों राज्यों की अलग-अलग जरूरतें और हित हैं, और दोनों के लिए स्वीकार्य समाधान खोजना मुश्किल है। विवाद को भी राजनीतिक रूप दिया गया है, जिससे इसे हल करना और भी मुश्किल हो गया है।
कावेरी नदी जल विवाद भारत सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। सरकार को ऐसा समाधान खोजने की जरूरत है जो कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों के लिए उचित हो, और जो सभी हितधारकों की जरूरतों को ध्यान में रखता हो। सरकार को दोनों राज्यों के बीच तनाव को कम करने और जल प्रबंधन के मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भी काम करने की जरूरत है।
कावेरी नदी जल विवाद के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- कावेरी नदी का बेसिन कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों राज्यों में फैला हुआ है।
- दोनों राज्यों को कावेरी नदी के पानी की आवश्यकता है, लेकिन पानी की उपलब्धता सीमित है।
- दोनों राज्यों की अलग-अलग जरूरतें और हित हैं।
- विवाद को राजनीतिक रूप दिया गया है।
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